कोर्ट को फिस्कल पॉलिसी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, अब विभिन्न क्षेत्रों को ज्यादा राहत देना संभव नहीं है

सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोरोना महामारी में विभिन्न क्षेत्रों को अधिक राहत देना संभव नहीं है। साथ ही सरकार ने जोर देकर कहा कि अदालतों को राजकोषीय नीति (फिस्कल पॉलिसी) में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-हलफनामा संतोषजनक नहीं है

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोन के ब्याज पर ब्याज माफ करने के मामले में सरकार का हलफनामा संतोषजनक नहीं था। इसी के बाद केंद्र सरकार ने यह प्रतिक्रिया दी है। अपने ताजा हलफनामे में सरकार ने कहा है कि पॉलिसी सरकार का अधिकार क्षेत्र है। अदालत को क्षेत्र-विशिष्ट से संबंधित वित्तीय राहत में नहीं जाना चाहिए। 2 करोड़ रुपए तक के कर्ज के लिए चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने के अलावा कोई और राहत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र के लिए हानिकारक है।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था हलफनामा

चक्रवृद्धि ब्याज की छूट और लोन पर विभिन्न क्षेत्रों को राहत देने पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है। इस हलफनामे में कहा गया है कि 2 करोड़ तक के लोन के लिए चक्रवृद्धि ब्याज (ब्याज पर ब्याज) माफ करने के अलावा कोई और राहत देना अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र के लिए हानिकारक हो सकता है। केंद्र सरकार ने कहा है कि पहले से ही उसने वित्तीय पैकेजों के माध्यम से राहत की घोषणा की है। उस पैकेज में और ज्यादा छूट जोड़ना संभव नहीं है।

केंद्र ने बताया कि 3 लाख करोड़ रुपए की एमएसएमई इमरजेंसी क्रेडिट पॉलिसी पहले ही लॉन्च की गई है ताकि वे नियमित फंक्शन (परिचालन) में वापस आ सकें।

पॉलिसी सरकार का डोमेन है

हलफनामे में सरकार ने कहा कि पॉलिसी सरकार का डोमेन है और कोर्ट को किसी विशेष सेक्टर के वित्तीय राहत में नहीं जाना चाहिए। केंद्र ने ये भी कहा कि जनहित याचिका के माध्यम से सेक्टर विशेष के लिए राहत की मांग नहीं की जा सकती। हलफनामे में केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया है कि संकट के हल के लिए उधार देने वाली संस्थाएं योजना बनाती हैं। इसलिए इसमें केंद्र और आरबीआई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

कैबिनेट की मंजूरी के बाद जारी किया जाएगा तौर-तरीका

सरकार ने कोर्ट को बताया कि 2 करोड़ तक के लोन के लिए चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने के तौर तरीकों को कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिलने के बाद जारी किया जाएगा। हलफनामे में कहा गया है कि बैंकों को सर्कुलर की तारीख से एक महीने के भीतर चक्रवृद्धि ब्याज माफी योजना को लागू करना होगा। कोर्ट को बताया गया कि गंभीर आर्थिक और वित्तीय तनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार और आरबीआई द्वारा निर्णय लिए गए हैं।

एक हफ्ते का समय दिया गया था

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार सहित इससे जुड़े तमाम पक्षों को एक हफ्ते के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा था। इस मामले में कोर्ट 13 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कामत समिति की रिपोर्ट को रिकॉर्ड करने के लिए कहा था जिसमें बड़े उधारकर्ताओं के लोन के पुनर्गठन की जांच की गई थी। आरबीआई ने अपने नए हलफनामे में कहा है कि छह महीने से ज्यादा की मोहलत उधारकर्ताओं के क्रेडिट व्यवहार को प्रभावित कर सकता है। इससे तय पेमेंट्स को फिर से शुरू करने में देरी हो सकती है। यह एक नया जोखिम हो सकता है।

रियल स्टेट और पावर प्रोड्यूसर्स की दिक्कतों पर विचार

नए एफिडेविट में सरकार से रियल इस्टेट और पावर प्रोड्यूसर्स की दिक्कतों पर विचार करने को कहा गया है। हालांकि इस नई एफिडेविट में सरकार ने कहा है कि पिटीशंस के जरिए विशेष सेक्टर के लिए रिलीफ की मांग नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की एफिडेविट पिटीशनर्स द्वारा उठाए गए तमाम मुद्दों पर डील करने में असफल रही है।



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चक्रवृद्धि ब्याज की छूट और लोन पर विभिन्न क्षेत्रों को राहत देने पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है


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