बैंकों से लोन नहीं मिल पाने के कारण सूदखोरों से 60% की ब्याज दर पर खेती के लिए पैसे ले रहे हैं किसान

पिछले महीने महाराष्ट्र के किसान ज्ञानेश्वर सिद्धार्थ को मानसून का बोआई सत्र आने के बाद बीज और खाद खरीदने के लिए पैसे की जरूरत पड़ी, तो बैंकों ने उन्हें लोन देने से मना कर दिया। ऐसे में उन्हें सूदखोरों से 60 फीसदी के सालाना ब्याज पर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज लेना पड़ा। कोरोनावायरस के कारण भारी सुस्ती से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था में आज सिद्धार्थ जैसे लाखों किसान हैं, जिन्हें बैंक कर्ज नहीं दे रहे हैं, क्योंकि बैड लोन के कारण वे कर्ज देने से डर रहे हैं। ऐसे में लाखों किसानों को अत्यधिक ऊंची ब्याज दर पर सूदखोरों से कर्ज लेना पड़ रहा है।

ऊंची दर पर लोन मिलने से घटेगी कृषि क्षेत्र की आय

कृषि देश की 2.8 लााख करोड़ डॉलर की इकॉनोमी में करीब 15 फीसदी का योगदान करता है। यह देश की करीब आधी आबादी को जीविका प्रदान करता है। ऊंची दर पर लोन मिलने से किसानों की आय घटेगी। सिद्धार्थ ने कहा कि अधिकांश लाभ सूदखोरों को ब्याज चुकाने में चला जाता है। अब सबकुछ मानसून पर निर्भर है। यदि फसल खराब होगी, तो मुझे लोन चुकाने के लिए खेत बचना पड़ेगा।

बैंकों से 4-10% की दर पर मिल जाता है कृषि लोन

एक अन्य किसान प्रशांत काठे ने कहा कि पिछले साल तक सूदखोर 24-36 फीसदी तक का सालाना ब्याज लेते थे। अब वे 48-60 फीसदी तक ब्याज मांग रहे हैं। उन्होंने 60 फीसदी ब्याज दर पर 3 लाख रुपए का लोन लिया है। आम तौर पर बैंकों से किसानों को 4-10 फीसदी की दर पर फसल लोन मिल जाता है।

कर्ज माफी योजना का पैसा नहीं मिलने से किसानों के लोन अकाउंट एनपीए हैं

सरकार बैंकों को ज्यादा कर्ज देने के लिए कह रही है, लेकिन बैंकों का कहना है कि उन्हें सतर्कता बरतनी पड़ रही है। वे विभिन्न सरकारों द्वारा घोषित कृषि ऋण माफी योजना के कारण भी किसानों को लोन नहीं दे पा रहे हैं। एक सरकारी बैंक में एग्रीकल्चर लेंडिंग के प्रमुख ने कहा कि कुछ सरकारों ने कई साल पहले कृषि ऋण माफ करने की घोषणा कर दी थी, लेकिन पैसा अब भी बैंकों के पास नहीं पहुंचा है। इसलिए टेक्निकल रूप से किसानों का लोन अकाउंट हमारे लिए एनपीए है। और जब तक पुराने लोन के बकाए का भुगतान नहीं होता, तब तक हम उन किसानों को और पैसा नहीं दे सकते।

पिछले साल महाराष्ट्र ने किसानों के 2 लाख रुपए तक के लोन को माफ करने की घोषणा की थी

पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने किसानों के 2 लाख रुपए तक के लोन को माफ करने की घोषणा की थी। सिद्धार्थ के ऊपर बैंक का 1,78,000 रुपए का लोन बकाया है। सरकार ने हालांकि इसके भुगतान के लिए अब तक बैंकों को पैसा नहीं दिया है। इसलिए सिद्धार्थ का एक तिहाई लोन अब भी बकाया है।

कर्ज माफी योजना की 30-35% रकम को ही अब तक राज्य सरकारों ने मंजूरी दी है

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2014-15 के बाद से अक्टूबर 2019 तक 10 राज्यों ने कृषि ऋण माफी योजना की घोषणा की थी, लेकिन उन्होंने बैंकों को लोन के पैसे का भुगतान नहीं किया है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक सरकारों ने सिर्फ 30-35 फीसदी रकम जारी करने की ही मंजूरी दी है। कृषि क्षेत्र में बैड लोन के ऊंचे स्तर के कारण भी बैंक किसानों को लोन देने से कतरा रहे हैं।

कृषि क्षेत्र के बैड लोन में बढ़ोतरी

बैंकों के कुल बैड लोन में गिरावट दिख रहा है, लेकिन कृषि क्षेत्र में बैड लोन बढ़ रहा है। सितंबर 2018 में कृषि क्षेत्र में बैड लोन का स्तर 8.4 फीसदी था। यह मार्च 2020 में बढ़कर 10.1 फीसदी पर पहुंच गया। रेटिंग एजेंसी इकरा के एनालिस्ट अनिल गुप्ता ने कहा कि बैड लोन की समस्या के कारण बैंक किसानों को गोल्ड पर लोन देना पसंद कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र के लोन में गिरावट

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार इस साल मार्च से जून के बीच कृषि क्षेत्र को दिए गए लोन में 1.8 फीसदी गिरावट आई। जून 2019 में कृषि क्षेत्र के कर्ज में 6.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। इससे एक साल पहले इसमें 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी।

खरीफ फसलों का होगा बंपर उत्पादन, क्योंकि इस साल मानसून का प्रसार देशभर में अच्छा रहा है



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पिछले साल तक सूदखोर 24-36% तक का सालाना ब्याज लेते थे, अब वे 48-60% तक ब्याज मांग रहे हैं


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